Thursday, December 15, 2011

अपनी औकात कभी भी किसी को भूलनी नहीं चाहिए



एक छोटी सी कहानी आप लोगो के समक्ष रखना चाहूँगा!
एक छोटे से गाँव में एक गरीब इमानदार ब्रह्मण था! नौकरी के लिए वोह एक सेठ के पास जाता है, सेठ उसकी माली हालत देखके, उसपे तरस खाके नौकरी पर रख लेता है!
वोह ब्रह्मण इमानदारी से अपना काम शुरू कर देता है! पहले तोह उसे साफ़ सफाई का काम दिया गया था, जिसे उसने बहुत ही अच्छे से निभाया! वोह दिन भर साफ़ सफाई करता और शाम को सोने से पहले अपने कमरे में रखे एक संदूक को एक बार जरुर खोल के देखता! दूकान के बाकी कर्मचारी उसकी इस हरकत को देखते और परेशान रहते की आखिर इसके इस संदूक में ऐसा क्या है जो यह हर दिन खोल के देखता है और बिना कुछ निकाले वापस बंद करके रख देता है?
फिर किताबी ज्ञान देख के उसे सेठ दूकान के हिसाब - किताब का काम भी दे दिया जाता है! जब उसको यह काम मिलता है तोह वोह बहुत बखूबी से सेठ को सूचित करता है की उनका कारोबार पिछले दो सालो से बहुत ही लाभ में जा रहा है लेकिन सेठ को उनके मुनीम द्वारा यह सूचित किया गया था की उनके कपडे के कारोबार में कोई जाएदा लाभ नहीं हो रहा! सेठ अपने पिछले मुनीम को बुला के पूछता है की उसने क्यों उसको गलत जानकारी दी? मुनीम घप्लेबाज़ था इसीलिए उसके पास इस प्रशन का कोई उत्तर नहीं था!
सेठ उसे नौकरी से निकाल देने का फैश्ला करता है, लेकिन ब्रह्मण के निवेदन पर उसे दुबारा नौकरी पर रख लेता है! लेकिन ब्रह्मण का वेतन उस मुनीम से जाएदा करके मुनीम को उस गरीब ब्रह्मण की देखरेख में काम करने का आदेश भी देता है!
धीरे धीरे समय बीतता है! गरीब ब्रह्मण अब गरीब नहीं रहता! समाज में उसने अपनी एक साफ़ छवि बना के राखी हुई थी! जो भी सेठ की दूकान में आता वही ब्रह्मण की प्रशंसा करके जाता!
समय बदलने के साथ साथ ब्रह्मण ने अपने विचार, अपनी आदत और अपना विनम्र स्वभाव नहीं बदला!
लेकिन दूकान से बाकी कर्मचारियों को उससे बड़ी ईष्या थी! वोह धीरे धीरे एक साजिश के तेहत सेठ का कान भरना शुरू कर देते है! और कहते है की वोह दूकान की तिजोरी से पैसे चोरी करके अपने संदूक में रखता है और हर दिन उसे देख के सोता है!
सेठ को भी अपने पिछले मुनीम और अपने बाकी कर्मचारियों की बातो पर विस्वास होने लगता है!
एक दिन सेठ ब्रह्मण को बुला कर संदूक के बारे में पुच लेता है! लेकिन ब्रह्मण उसे संदूक के बारे में कुछ भी कहने से साफ़ मना कर देता है!
इससे सेठ को और गुस्सा आता है और उस अपने कर्मचारियों के साथ उस ब्रह्मण के कमरे में जाके उसके संदूक का ताला जबरजस्ती तुड़वाता है! उस संदूक से एक पुराणी मैली पोशाक और एक फटा हुआ जूता मिलता है! पूछे जाने पर ब्रह्मण बताता है की यह वही पोशाक है जो वोह पहली बार पेहेन के सेठ के पास आया था! यह पोशाक मैंने इसीलिए संभल के रखी, क्युकी मुझे ज़िन्दगी भर कितना भी यश-अपयश मिले लेकिन मैं कभी भी अपने पुराने दिन ना भूल पाऊं! और इससे रख के मैं येही भी याद रखता हूँ की मेरी कल की ज़िन्दगी कैसी थी और सेठ जी के वजह से आज कैसी है, मैं उनका अहसान हमेशा याद रखु! येही वजह है की मैं हर दिन सोने से पहले इसे जरुर देखता था!
यह सब सुनके सेठ ने उसे गले से लगा लिया और कभी भी छोर्ड के ना जाने का वादा भी ले लिया!
और बाकी के कर्मचारियों को दुत्कारते हुए नौकरी से निकाल देता है! लेकिन वोह सभी उस ब्रह्मण का पैर पकड़ के रोने लगते है और ब्रह्मण सेठ जी से उनको दुबारा काम पर रख लेने के लिए निवेदन करता है जिसे वोह सेठ मान जाते है!
सदेश - दिन चाहे कितने भी बदले औकात हमेशा याद रखनी चाहिए! किसी से कोई भी वयवहार करते वक़्त अपने आपको उसकी जगह पर रखके एक बार जरुर सोचना चाहिए! 

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