जरा-सी गलतफहमी जीवनभर के संबंधों को खराब कर देती है। लोगों के बीच संघर्षपूर्ण स्थिति में भी संबंध मधुर बने रहें, ऐसा प्रयास भी एक बड़ी सेवा है। कुछ लोग दूसरों के संबंधों में बिगाड़ लाने में ही रुचि रखते हैं। पीठ पीछे एक-दूसरे को एक-दूसरे की गलत जानकारी देकर यह काम आसानी से किया जाता है।
दूसरों के संबंध सुधारने या मधुर बनाए रखने में हमारी भूमिका कैसी हो, यह हनुमानजी से सीखा जा सकता है। सुंदरकांड के 13वें दोहे की 3-4 चौपाइयों में तुलसीदासजी ने सीता-हनुमानजी की बड़ी सुंदर बातचीत बताई है। पहली ही भेंट में दुखी सीताजी ने हनुमानजी के सामने श्रीरामजी की शिकायत रख दी थी।
श्रीरघुनाथजी क्या कभी मेरी भी याद करते हैं? आज ज्यादातर जीवन साथी आपस में यही शिकायत करते पाए जाते हैं कि व्यस्तता में हमें भुला दिया गया है।
बड़े दुख से सीताजी बोलीं - नाथ! आपने मुझे बिलकुल ही भुला दिया। तब हनुमानजी ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने दावा कर दिया कि श्रीराम के मन में आप से ज्यादा प्रेम है।
मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता।।
जनि जननी मानहु जियं ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना।।
हे माता! सुंदर कृपा के धाम प्रभु भाई लक्ष्मणजी के सहित कुशल हैं, परंतु आपके दुख से दुखी हैं। आप दुख न कीजिए। श्रीरामचंद्रजी के हृदय में आपसे दूना प्रेम है।
विचार की यह अति प्रस्तुति दोनों के बीच गलतफहमी दूर करने की भूमिका ही थी। हनुमत भक्तों को आज अशांत समाज में यही भूमिका निभानी होगी।
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