Thursday, December 15, 2011

सुभाषित रत्न





....................................सुभाषित रत्न .......................


सुभाषितमयैर्द्रव्यैः सङ्ग्रहं न करोति यः !
सोऽपि प्रस्तावयज्ञेषु कां प्रदास्यति दक्षिणाम् !!


सुभाषित कथन रूपी सम्पदा का जो संग्रह नहीं करता वह "प्रसंगविशेष" की चर्चा के यज्ञ में भला क्या दक्षिणा देगा ?
समुचित वार्तालाप में भाग लेना एक यज्ञ है ,एवं उस यज्ञ में हम दूसरों के प्रति सुभाषित शब्दों की आहुति दे सकते हैं ! ऐसे अवसर पर एक व्यक्ति से मीठे बोलों की अपेक्षा की जाती है,
किंतु जिसने "सुभाषण" की संपदा न अर्जित की हो यानी अपना स्वभाव तदनुरूप न ढाला हो वह ऐसे अवसरों पर औरों को क्या दे सकता है ?


आत्मीय स्वजनों आशय मात्र है की "मधुर भाषा सभ्य समाज की परिचायक" है !


"बात ही हांथी पाईए बात ही हाँथी पाँव "


ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय !
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय !!

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