वास्तविक महापुरुष भाग्य बताता नहीं, बनाता है।
प्रारब्ध और भजन
प्रारब्ध या भाग्य
वो कर्म हैं जिन्हें हमें भोगने के लिए इस जीवन में दिया गया है
भजन या भक्ति प्रारब्ध के वश में नहीं है
अलग डिपार्टमेंट है
R T O office में housetax जमा नहीं हो सकता
और नगर पालिका में रोड टैक्स जमा नहीं हो सकता
प्रारब्ध में भजन - भक्ति है ही
इसका प्रमाण हमारा यह मानव शरीर हमें मिलना है
यह भजन करने के लिए ही मिला है
भजन केवल और केवल करने से होगा
भजन करने से कृपा प्राप्त होगी नाकि कृपा से भजन होगा
अतः प्रारब्ध को अलग रखना है और भजन - भक्ति को अलग
भक्ति ;निरपेक्ष' तत्व है, यह भाग्य के वशीभूत या भाग्य की अपेक्षा नहीं रखता
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