सनातन धर्म जड़ में चेतन को खोजने की विलक्षण ज्ञान व शक्ति देता है। यही कारण है कि चाहे शिव हो या शालग्राम यानी हरि हो या हर, के निराकार रूप भी सांसारिक जीवन को सुख-समृद्ध बनाने वाले माने गए हैं। इसी कड़ी में भूमि को भी मातृशक्ति स्वरूप बताया गया है।
मां के रूप में वंदनीय होने से भूमि पर पैर रखना भी दोष का कारण माना गया है। चूंकि हर मानव भूमि स्पर्श से अछूता नहीं रह सकता। यही कारण है कि शास्त्रों में भूमि स्पर्श दोष के शमन व मर्यादा पालन के लिये भूमि को जगतपालक विष्णु की अर्द्धांगिनी मानकर, उनसे एक विशेष मंत्र से क्षमा प्रार्थना जरूरी मानी गई है।
व्यावहारिक दृष्टि से इसमें हर इंसान को अहंकार से परे रहकर जीने का छुपा संदेश है यानी विनम्र सरल शब्दों में जमीन से जुड़े रहकर ही असफलता व दु:ख की ठोकरों से बचना संभव बताया है।
जानते हैं यह विशेष भूमि स्पर्श मंत्र। जिसे हर व्यक्ति को सुबह जागने के बाद जमीन पर पैर रखने से पहने जरूर स्मरण करना चाहिए -
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तन मंडिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व में।।
सरल शब्दों में अर्थ है कि समुद्र रूपी वस्त्र पहनने वाली पर्वत रूपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी, हे माता पृथ्वी, आप मुझे पाद स्पर्श के लिए क्षमा करें।
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